Saturday, 6 December 2008

सोनिया को बालासाहेब सझने लगे थे राने

( समाचार विश्लेषण )

मुंबई, ७ दिसंबर(विजय यादव)। शिवसेना संस्कारों के बीच पले-बढे नारायण राने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी बालासाहेब ठाकरे समझाने लगे थे । उन्हें लगा की शिवसेना की तरह कांग्रेस में भी सिर्फ़ एक ही निर्णायक होता है। जबकि यहाँ येसा कुछ नही है। आखिर उन्हें माया मिली न राम की कहावत पर न तो से एम की कुर्सी मिली ना ही पार्टी का साथ रहा ।

नारायण राने को शिवसेना का एक दबंग नेता मन जाता था , वह जब तक सेना में थे तब तक उनके आगे पार्टी का हर नेता नतमस्तक होता रहा । यही सम्मान वह कांग्रेस में भी पाना चाहते थे। उन्हें कांग्रेसी नीती का पुरा -पुरा ज्ञान नही था। वह बार-बार विलास राव देशमुख पर हमले करते रहे । उनके इसी बगावती निति ने उन्हें आज बाहर का रास्ता दिखा दिया । शिवसेना से बाहर आने पर कांग्रेस ने राने को सिर्फ़ इस नाते पार्टी में शामिल किया था की कोकण में उनकी अच्छी पकड़ थी । कांग्रेस भी आज समझ गई है कोकण में राणे की पहले जैसी पकड़ नही रही। इस बात की समझ आते ही पार्टी है कमान उन्हें नजर अंदाज कराने लगा था। बस इंतजार था मौके का। और मौका मिलते ही पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया।

लगभग राने जैसा ही हाल संजय निरुपम का है। जब तक वह शिवसेना में थे तब तक उनकी अलग ही धुस थी । आज वह येसी बीमारी से पीड़ित है जिसके बारे में न तो वह कुछ कह सकते है नाही सह सकते है। राने तो फ़िर भी निरुपम की अपेक्षा काफ़ी ठीक है। उनके पास तो आज भी कोकण के एक तिहाई लोगो का जनाधार है , जबकि निरुपम आज अपनी ताकत पर ५० से ज्यादा लोगो को जमा नही कर सकते। शायद यही वजह है की निरुपम बगावती बिगुल बजाने की बजाय शान्ति के साथ समय पास कर रहे है।

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