कृपा की कमेटी से नकारा नेताओं की छुट्टी तय
मुंबई,१ जनवरी (विजय यादव) । मुंबई कांग्रेस के उन बिल्ला छाप पदाधिकारिओं के लिए यह ख़बर कुछ अच्छी नही है। बिल्ला छाप पदाधिकारी वह लोग है ,जो गुरुदास कामत के कार्यकाल से अब तक कभी संगठन का कोई काम नही किया ना ही मुंबई कमिटी किसी बैठक में उपस्थिय रहे । ऐसे लोगो को वर्ष के पहले ही सप्ताह में वर्तमान मुंबई अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह बाहर का रास्ता दिखाने वाले है। मुंबई अध्यक्ष बनने के बाद ही कृपाशंकर ने मुंबई कमेटी सहित सभी जिला अध्क्षों की नई नियुक्ति का संकेत दे दिया था। इंतजार था नागपुर अधिवेशन ख़त्म होने का । पार्टी सूत्रों के अनुशार सिंह कमेटी में सिर्फ़ वही लोग रहेंगे ,जो पार्टी के लिए काम कर रहे है। इसके अलावा कामत खेमे लोगो को भी हटाये जाने की उम्मीद है।
मुंबई कांग्रेस में फिलहाल सक्रीय लोगो में वीरेद्र बक्शी ,जया पेंगल,जाकिर अहमद,विरेन्द्र त्रिपाठी,मधु चव्हान ,अजित सावंत ,संदेश कोडविलकर ,भरत पारेख जैसे लोग ही सामिल है। इसके आलावा ज्यादातर पदाधिकारी किसी न किसी वरिष्ठ नेता की मेहरबानियों पर ही पार्टी कार्ड लेकर घुमाता रहा है। मुंबई कमेटी के साथ-साथ सभी जिला अध्यक्षों को बदलना कृपा की मजबूरी बन गई है। अगर लोकसभा चुनाव के पहले फेरबदल नही होता है तो कृपाशंकर चुनाव में पुरी तरह से फेल हो जायेंगे । ऐसी भी संभावना व्यक्त की जा रही है की इस फेर बदल के दौरान अपना आदमी आलवेज राइट का सिद्धांत भी अपनाया जा सकता है। कुछ ऐसे लोगो को आगे भी बहाली हो सकती है ,जो पार्टी के लिए भले काम नही कर रहे है,लेकिन वह कृपा भइया के ख़ास है। ऐसे लोगो में वर्तमान सचिव कमलेश यादव ,धर्मेश व्यास ,रत्ना पिल्लै,चित्रसेन सिंह ,रामबक्स सिंह जैसे लोग शामिल है। कमलेश यादव पार्टी बैठकों में उपस्थित रहने बजाय कांदिवली की गली राजनीति में ज्यादा समय बिताते है। बिधायक पी यु मेहता की गोद में बैठकर राजनीति करने वाले कमलेश यादव ने हमेशा मक्खनबाजी में ही विश्वास किया है। यही हाल पूर्व बिधायक के पुत्र आशीष गोसालिया का है। इन्होने भी कभी पार्टी की बैठक को महत्व नही दिया । इनका तानो तो तय मन जा रहा है।
उत्तर मुंबई की राजनीति में हमेसा तनाव पैदा करने वालो महिला नेत्री निर्मला सावंत से भी कृपा को कोई उम्मीद नही करनी चाहिए की वे लोकसभा चुनाव में पार्टी की मदद कर पाएंगी । जिस मालाड विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने चुनाव लड़ा था , वहा ४ साल बाद भी वह अपना जनाधार नही नही बना पाई।
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